Monday, May 20, 2013

जब तुम "परेशान" होते हो, तभी ऐसा करते हो !


पिताजी के अचानक आ धमकने से पत्नी तमतमा उठी, लगता है बूढ़े को पैसों की ज़रूरत आ पड़ी है, वर्ना यहाँ कौन आनेवाला था ? अपने पेट का गड्ढ़ा तो भरता नहीं, घरवालों का कहाँ से भरोगे ?
मैं नज़रें बचाकर दूसरी ओर देखने लगा ! पिताजी नल पर हाथ-मुँह धोकर सफ़र की थकान दूर कर रहे थे !
इस बार मेरा हा्थ कुछ ज्यादा ही तंग हो गया ! बड़े बटे का जूता फट चुका है ! वह स्कूल जाते वक्त रोज भुनभुनाता है ! पत्नी के इलाज के लिए पूरी दवाइयाँ नहीं खरीदी जा सकीं ! बाबूजी को भी अभी आना था ! घर में बोझिल सी चुप्पी पसरी थी !
खाना खा चुकने पर पिताजी ने मुझे पास बैठने का इशारा किया ! मैं शंकित था कि जरूर कोई आर्थिक समस्या लेकर आये होंगे ?.
पिताजी कुर्सी पर उकड़ू बैठ गए। एकदम बेफिक्र ! " सुनो " कहकर उन्होंने मेरा "ध्यान "अपनी" ओर खींचा !
मैं सांस रोक कर उनके मुँह की ओर देखने लगा ? रोम-रोम कान बनकर अगला वाक्य सुनने के लिए चौकन्ना था !
वे बोले; खेती के काम में "घड़ी भर" की भी फुर्सत नहीं मिलती ! इस बखत काम का जोर है ! रात की गाड़ी से "वापस' जाऊँगा ! तीन महीने से तुम्हारी कोई चिट्ठी तक नहीं मिली ! जब तुम "परेशान" होते हो, तभी ऐसा करते हो ! 


उन्होंने "जेब" से सौ-सौ के "दस नोट" निकालकर "मेरी" तरफ बढ़ा दिए, "रख लो ! तुम्हारे काम आएंगे ! धान की "फसल" अच्छी हो गई थी ! घर में कोई दिक्कत नहीं है ! तुम बहुत कमजोर लग रहे हो ! ढंग से खाया - पिया करो ! बहू का भी ध्यान रखो।" मैं कुछ नहीं बोल पाया ! शब्द जैसे मेरे हलक में फंसकर रह गये हों !
मैं कुछ कहता इससे पूर्व ही पिताजी ने प्यार से डांटा, ले लो ! बहुत बड़े हो गये हो क्या ? 


"नहीं तो ! मैंने हाथ बढ़ाया ! 
पिताजी ने नोट मेरी "हथेली" पर रख दिए !



बरसों पहले पिताजी मुझे स्कूल भेजने के लिए इसी तरह हथेली पर "अठन्नी" टिका देते थे ! ..... 
पर तब मेरी नज़रें "आज की तरह" झुकी नहीं होती थीं ..

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